A. काढूरीकरण (Carburising)
Carburising प्रक्रम के अन्तर्गत निम्न कार्बन इस्पात की कुछ कार्बनमय carbonaceous पदार्थों के सम्पर्क में लगभग 850°C से 950°C के बीच गर्म करके उसकी सतह या पृष्ठ को कार्बन से संतृप्त (saturate) किया जाता है।
इन कार्बनमय पदार्थों को काबूराइजर (carburiser) कहते हैं।
carburiser के रूप में चारकोल, बेरियम कार्बोनेट (BaCO3), कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3), सोडियम कार्बोनेट (NaCO3) आदि मुख्य पदार्थ है।
Carburising के अन्तर्गत उच्च तापमान (850°C-950°C) पर कार्बन, इस्पात की सतह में प्रवेश करता है तथा लोहे के साथ मिलकर ठोस-घोल (solid solution) बनाता है।
जिसके फलस्वरूप निम्न कार्बन इस्पात (0.15%) की सतह उच्च कार्बन इस्पात (0.9% से 1.2%C) में परिवर्तित हो जाती है।
इस प्रकार Carburising निम्न-कार्बन इस्पात की बाहरी सतह को उच्च-कार्बन इस्पात की सतह में परिवर्तित करने की एक process है।
निम्न-कार्बन इस्पात की मात्रा बढ़ाने की निम्न तीन विधियाँ हैं-
(i) पैक काबूरीकरण (Pack carburising)
(ii) द्रव का—रीकरण (Liquid carburising)
(iii) गैस कार्दूरीकरण (Gas carburising)
(i). पैक का—रीकरण (Pack carburising)-
इस विधि में इस्पात के बने अवयवों को धातु-बक्स (metal box) में उपयुक्त काबूराइजर के साथ बन्द करके उनकी सतहों को कार्बन से संतृप्त किया जाता है।
इस प्रकार कार्बनमय-यौगिक में चारकोल-लगभग 70 प्रतिशत, बेरियम तथा सोडियम कार्बोनेट-20 से 30 प्रतिशत, कैल्शियम कार्बोनेट -2.5 से 3.5 प्रतिशत तक होता है।
सामान्यतया 0.1 मिमी० गहरी समृद्ध सतह को पाने के लिये एक घण्टे का समय लगता है।
इस क्रिया के उपरान्त बाक्स को भट्टी से निकालकर हवा में ठण्डा करते हैं
तथा कार्य-खण्डों को निकाल कर कठोरण व पायनीकरण क्रिया करके सतह को कठोर बनाते है।
(ii). Liquid carburising-
इस क्रिया में इस्पात-खण्डों (parts) को पिघले लवणों के बर्तन में 870°C से 900°C के बीच पर्याप्त समय के लिये गरम किया जाता है
जिससे उनकी सतह कार्बन से भली-भाँति समृद्ध हो सके।
पिघले लवण सामान्यतया सोडियम-कार्बोनेट, सोडियम-क्लोराइड, सिलिकॉन-कार्बाइड का मिश्रण होते हैं।
Liquid carburising विधि का मुख्य लाभ यह है कि इस्पात का तापन (heating) समान रूप से होता है
और कार्य-खण्डों को भट्टी से निकालकर सीधे ही शीतलन (quenching) द्वारा कठोर बनाया जा सकता है।
(iii). गैस काढूरीकरण (Gas carburising)-
इस विधि में निम्न-कार्बन इस्पात से बनी वस्तुओं को भट्टी में रखा जाता है जिससे कुछ कार्बनमय (carbonaseous) गैसों
जैसे मीथेन, प्रोपेन, बूटेन आदि का circulation या बातावरण तैयार किया जाता है।
इन गैसों से उच्च तापमान पर कार्बन अलग होकर इस्पात की सतह में चला जाताहै और उसे कार्बन से समृद्ध कर देता है।
जिसके फलस्वरूप स्टील की सरफेस हार्ड हो जाती।
B. नाइट्राडीकरण (Nitriding)- नाइट्रोजन का विसरण (diffusion of nitrogen)।
C. साइनाइडीकरण (Cyaniding)- कार्बन तथा नाइट्रोजन दोनों का विसरण।
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